Thursday, December 10, 2015

कांग्रेसी हेराल्ड की कहानी........

हेराल्ड की कहानी .........
-वर्ष 1938 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कांग्रेस पार्टी के पैसे से लखनऊ में 'एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड' कंपनी बनाई। 
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ये कंपनी अंग्रेज़ी में नेशनल हेराल्ड, हिंदी में नवजीवन, और ऊर्दू में कौमी आवाज़ नाम के अख़बार निकालती थी।
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नेशनल हेराल्ड के शुरुआती संपादक जवाहरलाल नेहरू थे, और प्रधानमंत्री बनने तक वो हेराल्ड बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स के चेयरमैन थे। 
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आज़ादी के बाद एसोसिएटेड जर्नल्स को देश भर में काफी ज़मीनें मिलीं, सस्ते दर पर लोन मिला और इसकी संपत्ति लगातार बढ़ती गई।
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कांग्रेस पार्टी का मुखपत्र बन जाने की वजह से बाद में नेशनल हेराल्ड का प्रसार बढ़ा नहीं और उस पर गंभीर आर्थिक संकट आ गया।
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हालत इतनी बुरी हो गई कि आखिर में वर्ष 2008 में नेशनल हेराल्ड का प्रकाशन बंद हो गया।
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उस वक्त एसोसिएटेड जर्नल्स पर करीब 90 करोड़ रुपये का कर्ज़ था। एसोसिएटेड जर्नल्स पर कर्ज़ तो था लेकिन देश भर में उसकी संपत्ति करीब 2000 करोड़ रुपये की थी, जिस पर मालिकाना हक के लिए धोखाधड़ी की चालें चली गईं और यही नेशनल हेराल्ड केस का मुद्दा है। इसके लिए कांग्रेस नेतृत्व पर गंभीर आरोप लगे हैं। ये सब कैसे हुआ ये जानना भी दिलचस्प है।
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ये कहानी 23 नवंबर 2010 से शुरू हुई जब गांधी परिवार के करीबियों ने यंग इंडियन नाम की एक कंपनी बनाई।
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जिसमें सोनिया गांधी के 38% और राहुल गाँधी के 38% शेयर थे यानी कुल 76 फीसदी हिस्सा सोनिया और राहुल गांधी का था।
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जबकि बचे हुए 24 फीसदी शेयर राहुल गांधी के करीबी सैम पित्रोदा, गांधी परिवार के करीबी सुमन दुबे, कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी ऑस्कर फर्नांडिज़ और एआईसीसी के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के हैं।
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यानी यंग इंडियन कंपनी असलियत में कांग्रेस पार्टी प्राइवेट लिमिटिड थी। इस कंपनी की 'पेड अप कैपिटल' सिर्फ 5 लाख रुपये थी।
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इस पूरे मामले में कई गंभीर सवाल उठ रहे हैं और राहुल गांधी और सोनिया गांधी को इन सवालों के जवाब देने के लिए तैयारी कर लेनी चाहिए।
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पहला सवाल ये है कि कांग्रेस ने एसोसिएटेड जर्नल्स को 90 करोड़ रुपये का बिना ब्याज़ का कर्ज़ क्यों दिया?
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जबकि नियम ये है कोई भी राजनैतिक पार्टी किसी भी व्यावसायिक काम के लिए कर्ज़ नहीं दे सकती है और इस मामले में तो ब्याज मुक्त कर्ज दिया गया है।
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सवाल ये भी है एसोसिएटेड जर्नल्स के शेयर सोनिया गांधी और राहुल गांधी की यंग इंडियन कंपनी को ट्रांसफर कैसे हुए?
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जबकि यंग इंडियन कोई अख़बार या जर्नल निकालने वाली या मीडिया कंपनी नहीं थी।
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सवाल ये भी है कि जब एसोसिएटेड जर्नल्स का ट्रांसफर हुआ था तब तक उसके ज़्यादातर शेयरहोल्डर इस दुनिया में नहीं थे, ऐसे में उनके शेयर किसके पास गए और कहां हैं?
नेशनल हेराल्ड की कई संपत्तियों को किराए पर भी दिया गया है जिससे करोड़ों रुपये कमाए जा रहे हैं। आज अदालत ने अपने फैसले में सुब्रमण्यन स्वामी द्वारा लगाए गए एक आरोप का ज़िक्र भी किया है जिसके मुताबिक दिल्ली में नेशनल हेराल्ड की बिल्डिंग से हर महीने 60 लाख रुपये का किराया आता है। सवाल ये है कि नेशनल हेराल्ड की संपत्तियों का जो व्यावसायिक दोहन हो रहा है वो पैसा किसके खाते में जा रहा है? ये कुछ मुश्किल सवाल हैं जिनसे सोनिया गांधी और राहुल गांधी का सामना हो सकता है। वैसे यहां सोनिया गांधी और राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ा सवाल ये है कि उन्हें देश की किसी अदालत में पेश होने को लेकर इतनी बेचैनी या परेशानी क्यों हैं? क्या सोनिया और राहुल गांधी एक आम नागरिक की तरह पटियाला हाऊस कोर्ट में पेश नहीं हो सकते। इन दोनों को देश की न्याय व्यवस्था में भरोसा रखते हुए अदालत में पेश होने के बारे में सोचना चाहिए। !!


कांग्रेसी हेराल्ड की कहानी........

हेराल्ड की कहानी......
अदालत में जाने कैसा डर.......
आखिर क्यो...........

-वर्ष 1938 में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कांग्रेस पार्टी के पैसे से लखनऊ में 'एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड' कंपनी बनाई। 
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ये कंपनी अंग्रेज़ी में नेशनल हेराल्ड, हिंदी में नवजीवन, और ऊर्दू में कौमी आवाज़ नाम के अख़बार निकालती थी।
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नेशनल हेराल्ड के शुरुआती संपादक जवाहरलाल नेहरू थे, और प्रधानमंत्री बनने तक वो हेराल्ड बोर्ड ऑफ डाइरेक्टर्स के चेयरमैन थे। 
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आज़ादी के बाद एसोसिएटेड जर्नल्स को देश भर में काफी ज़मीनें मिलीं, सस्ते दर पर लोन मिला और इसकी संपत्ति लगातार बढ़ती गई।
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कांग्रेस पार्टी का मुखपत्र बन जाने की वजह से बाद में नेशनल हेराल्ड का प्रसार बढ़ा नहीं और उस पर गंभीर आर्थिक संकट आ गया।
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हालत इतनी बुरी हो गई कि आखिर में वर्ष 2008 में नेशनल हेराल्ड का प्रकाशन बंद हो गया।
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उस वक्त एसोसिएटेड जर्नल्स पर करीब 90 करोड़ रुपये का कर्ज़ था। एसोसिएटेड जर्नल्स पर कर्ज़ तो था लेकिन देश भर में उसकी संपत्ति करीब 2000 करोड़ रुपये की थी, जिस पर मालिकाना हक के लिए धोखाधड़ी की चालें चली गईं और यही नेशनल हेराल्ड केस का मुद्दा है। इसके लिए कांग्रेस नेतृत्व पर गंभीर आरोप लगे हैं। ये सब कैसे हुआ ये जानना भी दिलचस्प है।
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ये कहानी 23 नवंबर 2010 से शुरू हुई जब गांधी परिवार के करीबियों ने यंग इंडियन नाम की एक कंपनी बनाई।
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जिसमें सोनिया गांधी के 38% और राहुल गाँधी के 38% शेयर थे यानी कुल 76 फीसदी हिस्सा सोनिया और राहुल गांधी का था।
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जबकि बचे हुए 24 फीसदी शेयर राहुल गांधी के करीबी सैम पित्रोदा, गांधी परिवार के करीबी सुमन दुबे, कांग्रेस के जनरल सेक्रेटरी ऑस्कर फर्नांडिज़ और एआईसीसी के कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा के हैं।
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यानी यंग इंडियन कंपनी असलियत में कांग्रेस पार्टी प्राइवेट लिमिटिड थी। इस कंपनी की 'पेड अप कैपिटल' सिर्फ 5 लाख रुपये थी।
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इस पूरे मामले में कई गंभीर सवाल उठ रहे हैं और राहुल गांधी और सोनिया गांधी को इन सवालों के जवाब देने के लिए तैयारी कर लेनी चाहिए।
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पहला सवाल ये है कि कांग्रेस ने एसोसिएटेड जर्नल्स को 90 करोड़ रुपये का बिना ब्याज़ का कर्ज़ क्यों दिया?
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जबकि नियम ये है कोई भी राजनैतिक पार्टी किसी भी व्यावसायिक काम के लिए कर्ज़ नहीं दे सकती है और इस मामले में तो ब्याज मुक्त कर्ज दिया गया है।
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सवाल ये भी है एसोसिएटेड जर्नल्स के शेयर सोनिया गांधी और राहुल गांधी की यंग इंडियन कंपनी को ट्रांसफर कैसे हुए?
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जबकि यंग इंडियन कोई अख़बार या जर्नल निकालने वाली या मीडिया कंपनी नहीं थी।
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सवाल ये भी है कि जब एसोसिएटेड जर्नल्स का ट्रांसफर हुआ था तब तक उसके ज़्यादातर शेयरहोल्डर इस दुनिया में नहीं थे, ऐसे में उनके शेयर किसके पास गए और कहां हैं?
नेशनल हेराल्ड की कई संपत्तियों को किराए पर भी दिया गया है जिससे करोड़ों रुपये कमाए जा रहे हैं। आज अदालत ने अपने फैसले में सुब्रमण्यन स्वामी द्वारा लगाए गए एक आरोप का ज़िक्र भी किया है जिसके मुताबिक दिल्ली में नेशनल हेराल्ड की बिल्डिंग से हर महीने 60 लाख रुपये का किराया आता है। सवाल ये है कि नेशनल हेराल्ड की संपत्तियों का जो व्यावसायिक दोहन हो रहा है वो पैसा किसके खाते में जा रहा है? ये कुछ मुश्किल सवाल हैं जिनसे सोनिया गांधी और राहुल गांधी का सामना हो सकता है। वैसे यहां सोनिया गांधी और राहुल गांधी के लिए सबसे बड़ा सवाल ये है कि उन्हें देश की किसी अदालत में पेश होने को लेकर इतनी बेचैनी या परेशानी क्यों हैं? क्या सोनिया और राहुल गांधी एक आम नागरिक की तरह पटियाला हाऊस कोर्ट में पेश नहीं हो सकते। इन दोनों को देश की न्याय व्यवस्था में भरोसा रखते हुए अदालत में पेश होने के बारे में सोचना चाहिए। !!